Thursday, May 4, 2017

प्रेम और प्यार में फर्क -Difference between Prem and Pyar

 



वैसे ‘प्रेम’ और ‘प्यार’ दोनों शब्दों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है और न ही दोनों में परस्पर कोई विरोधभास है लेकिन फिर भी अगर आप real life में देखें तो दोनों शब्दों के एक बड़ा व्यवहारिक फर्क आप देख सकते है |  आप देखें व्याकरण ने या ना ही भाषा ने दोनों शब्दों में कोई दुविधा पैदा की है और न ही दोनों में से किसी एक के साथ भेदभाव किया है |वो हम है जिन्होंने एक बड़ा योगदान दिया है ‘प्यार’ जैसे शब्द के साथ भ्रम को विकसित करने में |

असल में हमने ‘प्रेम’ को हमेशा एक स्वच्छ और निष्काम भाव के साथ सोचा है और हमारे दिमागी ढांचे में हमने इसी तरह इसे फिट किया है जिस तरीके से हम अगर किसी अध्यात्मिक शिविर या सत्संग में उपस्थिति होते है और किसी के प्रवचन को सुनकर खुद को परमात्मा के साथ जोड़ते है ठीक वैसा ही भाव हम ‘प्रेम’ शब्द के विषय में रखते है फिर चाहे हम इसे कंही भी इस्तेमाल करें | हमारे माता पिता के साथ हमारा ‘प्रेम’ भाई बहन के साथ हमारा ‘प्रेम’  या फिर कुछ और आत्मीयता के ही ऐसे उदाहरण | हम बड़े मैत्रीपूर्ण ढंग से प्रेम शब्द के इस्तेमाल के साथ खुद को सहज महसूस करते है |

जबकि अगर हम ‘प्यार’ शब्द की बात करते है तो इसके साथ ऐसा सौतेला व्यवहार करते है जैसे कि बस यह नयी पीढ़ी के पतन को ही परिभाषित करता हो जबकि ऐसा नहीं है हम अपने खून के रिश्तों या यूँ कहे by default जो रिश्ते बने है उनके के लिए इस्तेमाल नहीं करते लेकिन शायद जब हम अपने किसी साथी के लिए जिसे हम पसंद करते है उसके लिए ‘प्यार’ शब्द का इस्तेमाल करते है तो लोगो के लिए इसके मायने बदल जाते है वो कुछ इस तरह पेश आते है जैसे किसी अच्छे से धार्मिक नाम वाले बन्दे ने कुछ बहुत सारे बुरे काम करके अपनी छवि खराब कर ली हो और हम समाज में बस महज उसे एक बुरे चरित्र का इन्सान मानते है शायद ये इसलिए भी है कि अख़बारों में हम हमेशा पढने में पाते है कि “फलानी जगह आज दो प्यार करने वालों ने आत्महत्या की ” या “प्यार में किसी ने जान दे दी ” तो ऐसे ही कुछ उदाहरण एक नजरिया विकसित करते है और जब देखने में हम पाते है तो ऐसे लगता है जैसे ‘प्यार’ शब्द हो सकता है कुछ आशंकित बुरे परिणामो को जाहिर करता हो जबकि ऐसा नहीं है |

‘प्यार’ या ‘प्रेम’ जैसे अर्थपूर्ण शब्द दूजे नहीं है | ये जैसे सहोदर है |दोनों शब्दों में कतई कोई फर्क नहीं है फर्क केवल वो है जो हमने बदलते परिवेश के साथ खुद के दिमाग में विकसित कर लिया है और ये कोई विकास का उदाहरण नहीं है | बस एक मानसिक विकृति से मिलता जुलता है |

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