Sunday, February 26, 2017

माँ बाप से दुश्मनी || Heart Touching Story ||

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हमारे लिए इस दुनिया में सब से पहले हमारे माँ- बाप महत्त्व रखते है। बल्कि में तो ये कहता हू की हमारे माता पिता ही हमारी दुनिया है।
इसी मौके पे मेरी कवियत्री मित्र " खुशबु सिंह " द्वारा लिखी गयी कविता आपके सामने प्रस्तुत करता हू ।
 पापा ओ पापा मेरे लगते कितने प्यारे हो
जग से तुम तो न्यारे हो
दादी के दुलारे पापा
तेरी गुड़िया रानी हूं मैं सब गुड़ियों से प्यारी हूं मेरे नखरे सहते तुम हो मां को भी समझाते हो जब भी गलती करती हूं
डांट भी तुम लगाते हो
मैं जब रोने लगती हूं
चॉकलेट से फुसलाते हो
मम्मा की क्या बात करूं वो तो भोली भाली है पापा की दुलारी मां मेरी प्यारी सुंदर मां मंगल सिंह का नाम लेकर
खाना मुझे खिलाती मां
आइसक्रीम का लालच देकर
पढ़ने को तूं भेजती माँ
मैं जब रूठ जाती हूं कार्टून तू दिखाती मां बात-बात पर किस्सू करती प्यार से मुझे मनाती मां मां पापा मेरे अनमोल ईश्वर के परछाई हैं मेरे जीवन दाता वो.
 आज की जनरेशन  अपने माँ बाप के साथ आपसी मेल जोल बढ़ाने में असफल रहते है।  यही मुख्या कारण है 
दो पीढ़ी के बिच में आने वाली गेप। टेक्नोलॉजी के मुद्दे में नयी जनरेशन बहोत आगे है, लेकिन  इसका मतलब ये नहीं की आप बेहतर हो। क्यों वो टेक्नोलॉजी आपके पहले के जनरेशन ने की आविष्कार किया है। 

में इसी बात का एक बहोत ही उत्तम उदाहरण आप को देता हु -
     " आप एक आम के छोटे पौधे को ज़मीन में लगाइये , और एक बार लगाने के बाद उस के ऊपर बिलकुल भी ध्यान मत दीजिए। 
अब सोचिये उस पौधे का क्या हुआ होगा
जी हाँ,वो मुर्ज़ा के मर गया होगा। 
 वो आम का पोधे को समय समय पर पानी ,खात और जातन करने पर वह बड़ा हो कर तंदुरस्त और फैल देगा। "

अगर आपके मन में यह सवाल आता है की आपके माँ - बाप ने आपके लिए क्या किया है तो उस आम के पौधे की जगह खुद को रखके देखिये। 
" माँ एक कवच है तो पिता आप की ढाल है। "

एक वक्त एसा भी आता है जब हमें कुछ बातो पे रोकना टोकना पसंद नहीं आता ,और उसी वजह से हमें तो हमारे दुश्मन जैसे लगने लगते है।  हमें ऐसा महसूस होता है मानो वो हमसे हमारी आज़ादी छीन रहे हो। 
पर "मेरे दोस्त वो ज़ंज़ीर भी हमारी भलाई के लिए ही बांधी जाती है। "

आज तुम जो कुछ भी हो उनकी बदौलत हो ,तुम "क़ाबिल " हो किसकी वजह से ? भूल गए अपने माबाप की कुर्बानी जो तुम्हारी छोटी छोटी जरुरत को पूरा करने के लिए अपनी ख्वाहिशे   सके। वो इस लिए की तुम्हे कोई तकलीफ  न हो। 
माँ बाप ने हमारे लिए इतना कुछ किया ,न कभी तुमसे वेतन माँगा ना ही तुम्हे किसी और चीज़ की उम्मीद की। 

तो क्या अब तुम्हारा फ़र्ज़ नहीं बनता की तुम्हे जिसने इस काबिल बनाया की तुम सर उठाके के इस दुनिया में जी सको उसके बुढापे का सहारा बनो।  उन बूढ़े हाथो की लकडी बनो। पूरी ज़िन्दगी काम कर के थके उस खाली जिस्म को आराम दे सको,माँ की छाती से पिए हुई दूध का क़र्ज़ उतार सको  

क्या तुम इतना नहीं कर सकते ? तो धिक्कार है तुम पर।  


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